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वो:-“मेरा नाम वृषभानुज नहीं है ” मैं:”आप मेरे लिए सम्माननीय है मुझे आज से आपको यह नाम देने से कोई रोक नहीं सकता आप भी नहीं ? वो:-(गुस्सा उतरने की वज़ह से नर्म हो गए थे बोले )- ठीक है पंडित जी आप मुझे जो भी नाम दें सर माथे पर इस महिला को नौकरी दे देते

मुझे उसे उसकी हरकत देख कर सांड कहना था . किन्तु किसी को सरे आम सांड कह देना मुझ जैसे कवि को क्या किसी को भी अलस्तर-पलस्तर से सँवरने की तैयारी होती और कुछ नहीं . रहा सवाल क्रोध निकालने का सो कहना तो था ही . राजपथ चारी वो सत्ता के मद में चूर जब मेरे दफ्तर आया तो अपनी कथित गरीब “प्रजा”के कार्य न होने का आक्रोश निकाल रहा . … कुछ इस तरह वो चीखे :-“साब, आप ने तुलसा बाई को आँगनवाडी वर्कर न बनाया मैं आपकी दीवालें पोत दूंगा ! सी एम् साहब आ रहे हैं उनके सामने पेश कराउंगा ! आप अपनी कुर्सी बच्चा लीजिये ” मैंने कहा श्रीमान जी आप जन-प्रतिनिधि हैं गरीब जनता को सही बातें सिखाइए . झूठे आश्वासन देकर आप खुद फंस जाते हैं फिर हम पर दवाब बनाते है गलत काम करने के लिए ? “देखता हूँ,क्या और कितना गलत सही करतें हैं ? यह जानते हुए की श्रीमान का नाम “……..” है मैंने कहा:-“वृषभानुज जी हम चाहेंगे की आप कलैक्टर साब की कोर्ट में इस मामले को लगा दीजिये ” वो:-“मेरा नाम वृषभानुज नहीं है ” मैं:”आप मेरे लिए सम्माननीय है मुझे आज से आपको यह नाम देने से कोई रोक नहीं सकता आप भी नहीं ? वो:-(गुस्सा उतरने की वज़ह से नर्म हो गए थे बोले )- ठीक है पंडित जी आप मुझे जो भी नाम दें सर माथे पर इस महिला को नौकरी दे देते ? मैं:- वृषभानुज जी, संभव नहीं आपकी यह गरीब आवेदिका “पंच” है जो विधान में वर्जित वृषभानुज जी कसमसाते अपना सा मुंह लिए लौट गए किन्तु अपने को मिले नए नाम का उछाह लिए

girish billore mukul

Wednesday, 10 June 2009 01:09

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