समझ नहीं आता कि जब आग लगती है तो कुआ खोदना क्यों याद आता है | पिछले कई सालो से ये साफ़ है कि पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है |
अभी कुछ साल पहले जब मिनिरल वाटर बाजार में आया था तब हम हँसते थे कि पानी कौन खरीदेगा और आज ये हाल है की खरीदने से भी पानी नहीं मिल रहा है | हमारी नदिया सूख गयी है और तालाब कालोनी बन गए है | ये कैसा विकास है की मूलभूत ज़रूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है , ऐसा विकास तो सदियों में नहीं हुआ |
अगर साफ़ हवा और पानी नहीं है तो बाकी सब बाते बेमानी है | सोचो और जल्दी कुछ करो क्योकि समय और साधन दोनों कम बचे है | सरकार या भगवान्
से उम्मीद करना कि वो कुछ जादू करके सब ठीक कर दे यह संभव नहीं है , पर्यावरण तो अपने को ही अपनों से ही बचाना है |